23 December, 2005

ਅਲਵਿਦਾ (अलविंदा)

गजल

चिंगारी कोई ऐसी भड़का दे ऐ दोस्त
दिल की हरेक हसरत जो जला दे ऐ दोस्त

आंखो में तस्सवर ही ना रहे कोई
अश्कों के दरिआ इतना बहा दे ऐ दोस्त

तसवीर ना दिखे अब किस की
आइना-ए-जेहन को चूर चूर बना दे ऐ दोस्त

हाथ उठ ना पाए छूने को दामन उनका अब
फासला इस कदर बढ़ा दे ऐ दोस्त

गेसुओं की महक ना महक सके अब सांसों में
हवा का रुख कुछ यूं बदला दे ऐ दोस्त

कदम अब कभी मंज़ल की जुफ़्तजू ना करे
खून नसों में कुछ यूं जमां दे ऐ दोस्त

नाम उनका कभी लेने ना पाए अब
लवों को कुछ मेरे यूं सिला दे ऐ दोस्त

राख भी कमबख्त दिल की धड़कने से ना बाज आई
दूर बहुत दूर ले जा के दफ़ना दे ऐ दोस्त

उन की नज़रों का भरम देती है
हटा दे दुनिआ हटा दे ऐ दोस्त

दर्द कम होने से जां कहीं बच ना जाए
दाग कुछ और लगा दे ऐ दोस्त


लौट आए ना होस़ ओ हवास कहीं
ला जाम एक और पिला दे ऐ दोस्त

मेरा रहगुज़र कोई हो ना पाए
मंज़ल कुछ यूं छुपा दे ऐ दोस्त

माहताब जब नहीं तों रोशनी क्यों रहे बाकी
बुझा चिराग रात कुछ और संगीन बना दे ऐ दोस्त

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