गजल
चिंगारी कोई ऐसी भड़का दे ऐ दोस्त
दिल की हरेक हसरत जो जला दे ऐ दोस्त
आंखो में तस्सवर ही ना रहे कोई
अश्कों के दरिआ इतना बहा दे ऐ दोस्त
तसवीर ना दिखे अब किस की
आइना-ए-जेहन को चूर चूर बना दे ऐ दोस्त
हाथ उठ ना पाए छूने को दामन उनका अब
फासला इस कदर बढ़ा दे ऐ दोस्त
गेसुओं की महक ना महक सके अब सांसों में
हवा का रुख कुछ यूं बदला दे ऐ दोस्त
कदम अब कभी मंज़ल की जुफ़्तजू ना करे
खून नसों में कुछ यूं जमां दे ऐ दोस्त
नाम उनका कभी लेने ना पाए अब
लवों को कुछ मेरे यूं सिला दे ऐ दोस्त
राख भी कमबख्त दिल की धड़कने से ना बाज आई
दूर बहुत दूर ले जा के दफ़ना दे ऐ दोस्त
उन की नज़रों का भरम देती है
हटा दे दुनिआ हटा दे ऐ दोस्त
दर्द कम होने से जां कहीं बच ना जाए
दाग कुछ और लगा दे ऐ दोस्त
लौट आए ना होस़ ओ हवास कहीं
ला जाम एक और पिला दे ऐ दोस्त
मेरा रहगुज़र कोई हो ना पाए
मंज़ल कुछ यूं छुपा दे ऐ दोस्त
माहताब जब नहीं तों रोशनी क्यों रहे बाकी
बुझा चिराग रात कुछ और संगीन बना दे ऐ दोस्त
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